Shiv chaisa - An Overview

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

अर्थ: हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे (पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन से निकला यह विष इतना खतरनाक था कि उसकी एक बूंद भी ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी थी) आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। Shiv chaisa निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

अर्थ: माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप में माता पार्वती भी पूजनीय हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है।

पाठ करने से पहले गाय के घी का दिया जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखें।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

श्रीरामचरितमानस धर्म संग्रह धर्म-संसार एकादशी

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